उस रात किसी ने दरवाजे पे दस्तक दी |


उस रात किसी ने दरवाजे पे दस्तक दी |


उस रात किसी ने दरवाजे पे दस्तक दी |
 यह पहली मर्तवा नहीं था , कभी कभी मेरा भ्रम भी होता था | और बैसे भी जाने वाले कभी लौट कर नहीं आते | आती है तो सिर्फ उनकी यादें | ऐसा सोचने लगी थी | बेटा और बेटी दोनों सो चुके थे | छोटा सा घर था एक कमरे और छोटा बरामदा | ठंडी हवाएं चलने के कारन ठण्ड बाद गयी थी | लेकिन रजाई तो सुखाई नहीं , चलो चादर से ही काम चलाना पड़ेगा | बेटा और बेटी को चादर उढ़ा रखी थी उसी में थोड़ा सा कोना ओढ़ के लेटी | आंख लगने ही बाली थी कि दरबाजा खटखटाने की फिर से आवाज आयी | इतनी रात कौन होगा ? कोई जंगली जानबर तो नहीं | तब तक फिर से अबाज आयी | उठी और उठ के आवाज लगाई कौन है ? कौन है ? मै हूँ | कौन मै कहते हुए दरवाजा खोला | जी कौन ?
  जी मै लक्ष्मी , एक बूढी मैले और फटे हुए कपडे , बगल में एक थैला , और हाथ में लाठी लिए एक ,महिला |
जी मैने पहिचाना नहीं |
हाँ आज कल किसी को पहिचान में आ नहीं रही हूँ |
 मै कुछ समझी नहीं आप क्या कहना चाहती हो ?
कहना तो कुछ नहीं बस रात गुजारने की गुजारिश कर रही हूँ | उस औरत ने कहा |
 अंदर आ जाओ , कहते हुए एक टूटी सी चारपाई जो हमेश एक कोने में खड़ी रहती थी |
बिछाते हुए बैठने को कहा | घर में ज्यादा कपड़े तो थे नहीं लेकिन एक पुरानी उनके समय की दरी थी, उसे बिछते हुए पूछा आप कौन है ? बच्चे नहीं है आपके?
 हाँ है न , समृद्दि बेटी है वैभव नाम का बेटा है |
क्या करते है आपके बच्चे ?
 बेटा समाज सेवा करता है |
कैसी सेवा बड़ी उत्सुकता से मेने पूछा ?
वो बूढ़े माँ बाप को घर में रहने का अधिकार  और बृद्धाश्रम की समाज सेवा करता है , उस महिला ने नज़ारे झुकाते हुए उत्तर दिया ,
 मेने चूल्हे पे माता जी के खाने के लिए चावल चढ़ाते हुए कहा - जी माता जी सब समझ आगया |
 और बाते चलती रही .................. ||











Post a Comment

0 Comments