Motivational Poem for students in Hindi : Motivational Shayari for Students

Motivational Poem for students 

Kamyabi ke kadam

कामयाबी के कदमो की आहट सुनना चाहता हूँ ,

      असफलता के इस दौर के उस पार, 

सफलता को सलाम करना चाहता हूँ

       गिरा हूँ , फिर उठा हूँ 

गिर गया हूँ थक कर भले ही ,

   इस बार शिथिल मन को ऊर्जाबान करना चाहता हूँ,

मिल गए है पद चिन्ह सफलता की और जाने के ,

  हू जमी पर मगर जिद है, आसमान से ऊचा दिखना चाहता हूँ,



Chunaw 

ये जनता है जनाव , हिसाब तो मांगेगी,

जनता ने सत्ता दी है जनाव, जवाव तो मांगेगी,

पांच साल से बड़ा हो रहा है बिकास आपका, चुनाव तो मांगेगी 

सुना है आप पड़ोसियों से बहुत खेलते हो , ख़िताब तो मांगेगी,


Dil Ki Abaj

आज मुल्क के ह्रदय से एक ही आवाज आरही है 

 बेरोजगार तो  हूँ ही ये महगाई भी मारे जा रही है 

गरीब हूँ , किसान हूँ , क्या यही गुनाह है मेरा 

मेरी उगाई हुयी प्याज ही मुझे ठगे जा रही है 


महकमा बदल भी गया तो क्या हुआ ?

रस्सी वो,  जो  फंदे बाली है फिर भी बिके जा रही है 

वादा , जुमलेबाज़ी , फरेबी , नकवबाज़ी कब तक 


Motivational Shayari for Students

Jingi ke us daur se ....

जिंदगी में उस दौर से गुजर रहा हूँ,

धड़कन नहीं है दिल में ,

मगर साँस ले रहा हूँ,

घुमाता हूँ नजर जिधर भी,

नफ़रत का ज़हर फैला दिखाई दे रहा है, 

जरिया नही है कोई ,

अमन शांति और प्यार में तब्दीली का,

धुंआ है ,घुटन है, ज़हरीली अफवाओं का !

मौसम है शर्दी का मगर ,

झुलस महसूस कररहा  हूँ,

जिंदगी में उस दौर से गुजर रहा हूँ,. . . .  .

 मैं नही चाहता के गिरगिट बन जाऊ,

हर क्षण हर पल एक नया रंग दिखाऊ,

 आदत नहीं है झूठी मुस्कान दिखने की,

क्या जरुरत अपने ही नजरो मैं गिर जाने की,

खुद से किये बादौ से ही मुकर रहा हू,

जिंदगी में उस दौर से गुजर रहा हूँ,

धड़कन नहीं है दिल में ,

मगर साँस ले रहा हूँ,


Masumiyat

मासूमियत को आज हैवानियत के आगे झुकते देखा ,

चरकुला चौखाने में मासूम को ठिठुरते देखा ,

आंख भर आयी जब ,

पेट पे हाथ रख साहब के आगे आँचल फैलाते देखा,


               कैसे हो सकते है इतने पत्थर दिल के साहब,

              बख्शीश के नाम पे फटकार लगाते देखा ,

              जब आयी गिड़गिड़ाहट मज़बूरी के लावो पे,

               तो चंद शिक्का उछाल के आंख दिखाते देखा,



Dashhara

दशहरे का दिन है इसे और भी खास बनाओ,

कुरीतियों और बिकारो को  , पुरातन संस्कारो के पैरो तले दवाओं

समाज में पनप रहे दुराचारियो को , अपने आदर्श श्री राम की याद दिलाओ,

जो भटक गए है अहंकार के अंधकार में , उन्हें प्रेम के प्रकाश की ज्योति दिखाओ,



आज ऐसे दशहरा मनाएंगे हम,

जितने भी है रावण ,सभी को जलायेगे हम,

ना कोई गिला सिकवा ना शिकायत , आज सिर्फ मुस्करायेगे हम,

जो भी मिले राह में भटकता , उसे आज ऊगली थमाएंगे हम,

आज ऐसे दशहरा मनाएंगे हम,


आज ऐसे दशहरा मनाएंगे हम,

कोई पूछेगा तो सिर्फ बतायेगे हम,

कब से मैला है तन बदन,'आज तो नहाएंगे हम,

सरे सौदे छोड़ , सिर्फ प्रेम के गीत गुनगुनायेंगे हम,

आज ऐसे दशहरा मनाएंगे हम,


आज ऐसे दशहरा मनाएंगे हम,

दावत राखी है घर पे , सभी को बुलाएंगे हम,

ईमानदारी,सुशिक्षा और परोपकार की थाली खिलायेगे हम,

आज ऐसे दशहरा मनाएंगे हम,


आज ऐसे दशहरा मनाएंगे हम,

ईर्ष्या , द्वेष , नफरत को मिटायेंगे हम

नग्नता , अश्लीलता , पश्चमी सभ्यता को मिटायेंगे हम,

आज ऐसे दशहरा मनाएंगे हम,

 


जिंदगी में दोस्त और किताबे चुन के रखनी चाहिए,

ये बो  दोस्त होते है जो आपके सफल जीवन के सफलता के असली हथियार होते है,

 इनके बिना सफलता मिलना संभव नहीं है, ये हमे आदर्श , नीति , ज्ञान , आदि सिखाती  है , इस लिए चुनाव अपने स्वभाव , अपनी कला क्षमता के अनुसार करना चाहिए , आप जिस क्षेत्र में ज्यादा निपुण है उसी से सम्बन्धित किताबे खरीदनी चाहिए,


 आईने की तरह सच्चा मार्ग दर्शन करती है किताबे,

चश्मे की तरह स्पस्ट दिखती है किताबे,

अज्ञान के अंधकार में गुम हो जाओ तो ,

अज्ञान से प्रकाश की और लेजाती है किताबे,


बहुत कुछ भूल गए ,और भी भूलते  जा रहे है,
आज के समय में हम , 
आस्था , संस्कार , नैतिकता , और अपनी पुरातन संस्कृति भूलते जारहे है,
  पश्चिमी देशो से शूट बूट क्या आ गये, हम अपना कुरता धोती भूलते जारहे है,
सिनेमा का असर यहां तक आगया है, हम अपना आचरण भूलते जा रहे है,
थॉर और कैप्टन अमेरिका क्या आगये , हम रामायण को भूलते जारहे है,
इंसान बनने में प्रतिद्विन्दता क्या काम हुयी , हम इंसानियत भूलते जारहे है, 
 थोड़ा सा मनन और पुनर बिचार की आबस्यकता है बरना हम अपने आप को भूलते जारहे है,


 चस्मा ..

अगर फुर्सत मिले तो ये चस्मा हटा लेना,
समझ में आए इंसानियत का मतलब ,
तो दिल से मजहब का बैर मिटा देना,
कैसे सभी पहलू पे सही हो सकता है कोई व्यक्ति विशेष ,
जाननी हो खुद की सच्चाई अगर  तो , घर में रखे आईने से आँख मिला लेना,

अगर फुर्सत मिले तो ये चस्मा हटा लेना,
चाँद मुनाफे के चलते खुद को ना इतना गिरा लेना,
कभी बक्त हुआ खुद से मिलने का तो ,
पहले अपना ये मुखौटा हटा लेना,


Shilshila Ye yu hi Chalata Rha...

तेरा नाम मिटाना लिखना , लिखना मिटाना 

                  सिलसिला ये यू ही चलता रहा |

तेरा हाथ थाम क़र बैठना , कभी बैठ कर हाथ थामना 

                 तेरी यादो में खुद को शताने का सिलसिला ये यू ही चलता रहा |

कभी मुस्करा कर रोना , कभी रो कर मुस्कराना |

               तेरी चाहत में सजाने और सबरने का सिलसिला ये यू ही चलता रहा |

तेरी जुल्फों का उड़ना उड़ाना , कभी बेबजह शताना 

               तेरा वादा करना , वादा करके फिर मुकर जाने का सिलसिला ये यू ही चलता रहा |

तेरी मेरे लिए लापरबाही पे, खुद का जलना जलाना

               तेरा मेरा मिलाना और फिर मिल के बिछड़ जाने का सिलसिला ये यू ही चलता रहा | 

मेरी पाकीजा मुहब्बत में सिर्फ तेरा फ़साना , गाना और गुनगुनाना 

                तेरा बेवक्त जाना और चले जाने  का सिलसिला ये यू ही चलता रहा |

तेरा नाम मिटाना लिखना , लिखना मिटाना 

                  सिलसिला ये यू ही चलता रहा |

               


बीर रस की कविताये 

सुबह चुप थी मगर, शाम बोलती रही |

आँख नाम थी  मगर नजर डोलती रही |

हम चुप है मगर ये हादसे की तस्बीर बोल रही है |

कुछ तो था माजरा , ये सुराग ढूंढ़ती रही |




वक्त के साथ हालात भी कुछ ऐसे बदल जाते है |

जो कभी मौन थे , बो अब जहर उगल जाते है | 

मोहताज थे सियासत की एक शाम पाने को |

बो भी अब शाम ए महफ़िल सजाते है |


हादसा था खबर थी ये अख़बार की |

ये बात थी आंदोलन के शुरुबात की |



खूबसूरत एहसास

इस खूबसूरत एहसास को क्या नाम दूँ |

दिल में रखु या सांसो में उतार लूँ 

चाँद तारो से पूछूँ या खूबसूरत चांदनी से बोल दूँ 

धड़क रहे हो धड़कनो में , क्या सांसो में भी घोल दूँ 

हर पल हो मेरे ख्वावो में , क्या ख्यालों में भी जोड़ दूँ 

अब ये बताओ ,

 जिंदगी बनाऊ तुम्हे , या जिंदगी तुम्हारे हवाले छोड़ दूँ 

इस खूबसूरत एहसास को क्या नाम दूँ |


जिसे ना मेरे प्यार की कदर , 

इफ्तिफाक से उसी को चाह रहे थे हम ,

ना मंजिल थी ना कोई मुकाम था , 

गुमनामी की रहो पर बेपरबाह जा रहे थे हम ,

फरेबी था वेबफ़ाई थी जिसके जेहन में ,

उसी की चाहत में दिल में सुलगती आग आशुओ से बुझा रहे थे हम,

जो था मुहब्बत की रौशनी से बेखबर ,

 उन्ही की इवादत में जज्बातो की समां जला रहे थे हम ,

मिटा दी जिसने मेरे आरजू की तस्वीर , 

उसी फरेबी को दिल की दुकान में सजा रहे थे हम




कुछ पल के लिए तेरे नैनो में डूब गया था 

तेरे पास खंजर और छुरियां भी है भूल गया था 

शुकरगुजर हूँ ए कातिल तेरा , समय रहते तूने औकात दिखा दी 

बरना मैं तो इश्क़ का फंदा डाल के झूल गया था 


 बेटियां चली जाती है अपनी अस्मिता दे कर 

हवसी दरिंदे रह जाते है सरकारी दामाद बन कर 

चिकन मटन करी तोड़ते है हम आम जनता के खर्चे पर 

४ बर्ष बाद छोड़ दिए जाते है , नाबालिक समझ कर 


बस खून का घूट पीकर रह जाती है वो बेबस माँ 

जली हुयी बेटी की लाश को जवाव देती है वो बेबस माँ

चार मोमबत्तियां और कुछ सहनुभूति के कर्ज में डूबती है वो  बेबस माँ 

हर एक पल जीते जी मौत को अनुभव करती है वो बेबस माँ 


गाय के काटने के अफवाह मात्र पर  निकल आती है बेरहमी लाठियां 

और बेगुनाह धड़ से अलग कर दी जाती है उसकी उंगलियां 

आज तो जिन्दा जल रही है निर्दोष निर्मम बेटियां 

क्यों नहीं निलती अब sp  साहब की रिवाल्वर से गोलियां ?


नारी सम्मान और सुरक्षा के झूठे वादे किये जाते है

मन की बात और कुछ जुमले दिए जाते है 





हवस के पुजारियों इंसानियत का कर दिया है बुरा हाल

स्त्री जाति कराह रही है तुम्हारे अत्याचार से ,

मानवता शर्मशार है तुम्हारे व्यबहार से ,

उम्मीदों का जलता दीप बुझा कर जश्न मानते हो 

इंसान तो नहीं हो , पशुता की मुहर लगते हो 


Khoobsoorat Ehasas

इस खूबसूरत एहसास को क्या नाम दू 

दिल में रखु या सांसो में उतर लूँ 

चाँद तारो से पूछूं या खूबसूरत चांदनी को बोल दूँ 

धड़क रहे हो धड़कनो में , क्या सांसो में भी घोल दूँ 

हर पर हो मेरे ख्वावो में , क्या ख्यालो में भी जोड़ दूँ 

जिंदगी बनाऊ तुम्हे या जिंदगी तुम्हारे नाम कर दूँ 

 इस खूबसूरत एहसास को क्या नाम दू 

 

 


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